Opinion

बिहार में टाइगर अभी जिंदा है..फिर एक बार ‘नीतीशे कुमार’

प्रशांत कुमार, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेख

नीतीश के पास वो जादू की पुड़िया है.. वो जब चाहे..जहां चाहे खोलकर अपनी झोली भर लेते हैं। उन्हें पता है कि बिहार में किस वक्त किस चीज की आवश्यकता है। तभी तो वो 2005 का इतिहास दोहरा रहे हैं। ये जीत सीधा-सीधा नीतीश कुमार की है..2020 में जेडीयू के 43 सीट मिलने के बाद लगने लगा था कि नीतीश की प्रासंगिकता कम होने लगी, बीच-बीच में नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी दिखी। लेकिन नीतीश ने पांच साल में अपनी छवि और लोकप्रियता में अप्रत्याशित बदलाव किया। 20 साल तक सत्ता में बने रहने वाले सुशासन बाबू पर बिहार की जनता ने एक बार फिर भरोसा जताया है। बिहार के वोटरों की पूरी सहानुभूति मिली है। बिहार की राजनीति पिछले दो दशक से तीन मुख्य दल (भाजपा, जदयू और राजद ) के इर्द-गिर्द घूम रही है। मुख्य विपक्षी पार्टी ने इस चुनाव में उन्हें बीमार सीएम और भ्रष्टाचार का पितामह करार दिया, लेकिन राजनीति के चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ जाने को लेकर बार-बार दोहराते रहे कि दो बार गलती हो गई, अब कहीं नहीं जाएंगे। कई बार उन्होंने मंच पर पीएम के साथ यह बात दोहराई। इससे पीएम मोदी और अमित शाह ही नहीं बल्कि बिहार की जनता ने भी उनकी गलती मान कर माफ कर दी। उनपर एक बार फिर विश्वास जताया।

बिहार में सुशासन के पर्याय बने नीतीश

इस चुनाव में नीतीश के खिलाफ कोई बड़ा आक्रोश नहीं था। थोड़ा बहुत उनके विधायकों के खिलाफ एंटी अनकम्बेंसी जरूर थी, लेकिन इकलौते नीतीश जनता के आज भी चहते हैं। उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के बाद भी उनके प्रति सहानुभूति कूट कूट दिख रही है। इसके पीछे एक ही वजह है कि उन्होंने जो कुछ भी किया वो बिहार के लिए है.. न कि अपने या परिवार के लिए.. यहां तक कि वो अपने बेटे निशांत को भी सियासी डेब्यू नहीं करा पाएं। जैसा कि अन्य दलो के नेता आम तौर पर करते हैं। नीतीश ने बिहार में विकास, लॉ एंड ऑर्डर,शांति कायम रखने में कामयाब हैं..इसके इतर वो लंबे समय से सभी समुदायों में अपनी पकड़ मजबूत बनाए हुए हैं। उन्हें पिछड़ा, अति पिछड़ा, सवर्ण,दलित, महादलति और अल्पसंख्यक समाज का भी समर्थन हासिल है।

दस हजारी बनी नीतीश का मास्टर स्ट्रॉक

नीतीश की कई योजनाओं पर लोगों ने मुहर लगाई है। शराबबंदी कानून भी लोगों को रास आ रहा है। चुनाव में कुछ दलों ने भले ही सरकार बनने पर शराबबंदी कानून खत्म करने का दावा किया था, लेकिन बिहार की जनता नशा और नशे के खिलाफ आज भी एकजुट है। नीतीश की छवि को बूस्ट करने में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना यानी दस हजारी सबसे बड़ा फैक्टर बनकर उभरा है। नीतीश का महिलाओं पर और महिलाओं का नीतीश पर जो भरोसा कायम है, वो एक बार फिर से चुनावी आंकड़ों से साबित कर दिया कि टाइगर अभी जिंदा है…

एनडीए के लिए चिराग हुए चिरंजीवी

हां एक ओर बात इस बार चिराग ने भी एनडीए की जीत में बड़ा योगदान दिया है। पीएम के हनुमान कहे जाने वाले चिराग पासवान की पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की है.. जो पिछली बार 28 सीटों पर जदयू को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन चिराग का एक साथ होने से एनडीए को बड़ा लाभ मिला है। चिराग एनडीए के लिए चिरंजीवी साबित हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा जंगल राज का संदेश जनता तक पहुंचाने में सफल रहे।

रैली में भीड़ पर वोट नहीं!

तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में सबसे अधिक कैंपेन किया.. चुनावी कैंपेन उनका ऐसा था कि वो सभाओं में सिर्फ अपना चेहरा दिखाकर निकल जाते थे. उनकी एक झलक देखने के लिए भीड़ भी उमड़ती थी। उन्होंने नौकरी, जीविका दीदियों को 30 हजार रुपये देने का ऐलान किया था..लेकिन जनता उनके पिता के कार्यकाल को याद कर उनके दावे और वादे को खारिज कर दी। जिसकी उन्हें इस चुनाव में सबसे अधिक दरकार थी । बिहार के लोग आज भी जंगल राज, अपहरण, फिरौती को याद कर सहम जाते हैं।

प्रशान्त किशोर का अगला प्लान क्या होगा?

प्रशान्त किशोर पहली बार सियासी मैदान में कदम रखे हैं। पलायन, रोजगार, फैक्ट्री लगाने और शिक्षा को चुनावी मुद्दा बनाया। उन्होंने इस चुनाव में एक नया मुद्दा तैयार किया, जिससे अन्य दल भी इन मुद्दों को अपनाने के लिए मजबूर हुए। चुनाव के दौरान ऐसा लगता था कि प्रशान्त किशोर एनडीए और महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं..वो भाजपा की अगड़ी जाति और मीडिल क्लास का वोट काटेंगे, लेकिन उनकी ढाई-तीन साल की मेहनत रंग नहीं ला पायी। हालांकि, प्रशान्त किशोर को निराश होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि वो चुनावी रणनीतिकार जरूर हैं.. लेकिन राजनीति के बाजीगर नहीं। मोदी-नीतीश राजनीति के चाणक्य हैं। मोदी का 45 साल का सियासी तजुर्बा और नीतीश का 35 साल का राजनीति अनुभव सियासी हवाओं का रुख मोड़ने के लिए काफी है।

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