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तारीख पर तारीख अब और नहीं…

आपराधिक न्याय प्रणाली से जुड़े तीन नये अधिनियम संसद द्वारा पारित कर दिए गए हैं। अब तक आपराधिक न्याय प्रणाली भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड-आईपीसी) 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम से संचालित थी। इनमें समय-समय पर संशोधन हुए हैं, लेकिन यह संशोधन अपराध की बदलती प्रकृति और उसकी जांच प्रक्रिया में अपेक्षित बदलाव से दूर थे। इन तीनों कानून की जगह क्रमश: भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 लागू होंगे। इसके जरिए पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली में अभूतपूर्व बदलाव किए गए हैं। आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार को लेकर समय-समय पर विभिन्न समितियों ने सुझाव दिए। 2000 में जस्टिस वीएस मालिमाथ की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया। समिति ने 158 अहम सिफारिश की थी। इन सिफारिशों में आईपीसी, सीआरपीसी समेत साक्ष्य अधिनियम में बदलाव भी शामिल था। समिति की कई अहम सिफारिशें नये कानून में शामिल की गई हैं। इस कमेटी ने सबूत के तौर पर ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग को अधिकृत करने की सिफारिश की थी। 2007 में माधव मेनन समिति अपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिए राष्ट्रीय नीति का मसौदा पेश किया। 2012 में निर्भया कांड के समय जस्टिस आरएस वर्मा की अध्यक्षता में कमेटी गठित हुई थी। इसके बाद आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 2013 संसद ने पारित किया। केंद्रीय गृह मंत्रालय की पहल पर 2019 में सभी राज्यपालों, प्रशासक, पुलिस महानिदेशकों, हाईकोर्ट के मुख्य न्याधीशों, विधि विशेषज्ञों, सांसद,विधायक,कलेक्टर और एसपी से आपराधिक न्याय प्रणाली पर सुझाव मांगे गए। इन सभी सुझावों को दिल्ली लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने संकलित किया।

दंड की जगह न्याय को वरीयता

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में 511 धाराएं थीं। अब नये कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में 358 रह गई हैं। 20 नये अपराधों को जोड़ा गया है। 41 अपराधों में कारावास की अवधि को बढ़ाया गया है। 82 अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा सुनिश्चित की गई है। 19 धाराओं को निरस्त किया जा चुका है। पुरानी आईपीसी में सरकार के खिलाफ किए गए अपराधों को पहली प्राथमिकता दी गई थी। जबकि नये कानून में मानवीय अपराधों विशेष रूप से हत्या, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध को प्राथमिकता दी गई है। बलात्कार से जुडी धाराएं 375 और 376 थी। बीएनएस में इसे धारा 66 और 69 में शामिल किया गया है। हत्या धारा 302 की जगह 101 हो गई है। अपहरण जो कि 359 और 369 धाराओं में था वह अब 137 और 140 में समाहित है।

देशद्रोह को परिभाषित किया

पुराने कानून में राजद्रोह एक ऐसी धारा थी, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने देश की स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए किया। आजादी के बाद से राजनीतिक दलों के बीच यह हमेशा सिसायी मुद्दा रहा। पुराने कानून में राजद्रोह की धारा 124 सरकार के विरुद्ध की गई टिप्पणी पर सजा का प्रावधान करती थी। सरकारों पर टिका टिप्पणी लोकतांत्रित देश की पहचान हैं। भारतीय न्याय संहिता राजद्रोह को खत्म कर देशद्रोह को परिभाषित करती है। धारा 152 कहती है भारत की एकता और अखंडता तोड़ने वाली गतिविधियों जैसे सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक और अलगाववादी गतिविधियां पर देशद्रोह की श्रेणी में है। इसके लिए कठोर सजा का प्रावाधान है। आतंकवाद को पहली बार परिभाषित किया गया है।

मॉब लिंचिंग पर फांसी की सजा

भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को वरीयता दी गई है। नाबालिग लड़की के साथ गैंगरेप में पॉस्को की धाराएं स्वत: लगेगी। 18 साल से कम उम्र की लड़कियों के मामले में आजीवन कारावास और मृत्युदंड का प्रावधान, गैंगरेप के मामले में 20 साल की सजा और उम्रकैद की सजा होगी। उपचार के समय तथा कुछ मामलों में गैरइरादतन हत्या में सजा कम की गई हैं। कोई समूह यदि किसी की हत्या कर देता है, तो मॉब लिंचिंग पर पहली बार फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। नये आपराधिक न्याय अधिनियम के कुछ प्रावधानों का विरोध भी हो रहा है। हिट एंड रन इनमें सबसे अहम है। अब तक किसी वाहन चालक द्वारा लापरवाही पूर्वक,अथवा नशे की स्थिति में सड़क हादसा करने पर भी कारित अपराध जमानती होता था। अक्सर देखने में आता था कि वाहन चालक को तुरंत जमानत मिल जाती थी। उसका लाइसेंस रद्द होने या निलंबित होने की सजा होती थी। नया कानून कहता है कि ड्राइवर सड़क हादसे के तुरंत बाद नजदीकी पुलिस स्टेशन पहुंचकर पुलिस के साथ सहयोग करे। यदि सड़क हादसा के बाद पीड़ित को मरता हुआ छोड़कर वह फरार होता है तो दस साल की सजा और सात लाख तक के अर्थदंड का प्रावधान है। अंग्रेजों के समय से चली आ रही आपराधिक न्याय प्रणाली में कई अपराधों में पचास रुपये से लेकर हजार रुपये अर्थदंड है। उदाहरण के लिए आईपीसी की धारा 272 कहती है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट करने और बेचने पर छह महीने की सजा और एक हजार रुपये अर्थदंड है। लोगों के जीवन से हो रहे खिलवाड़ को लेकर कानून की उदासीनता का यह एक उदाहरण है। नये कानून में न्यूनतम सजा और जुर्माना दोनों बढ़ाया गया है।

पुलिस,अधिवक्ता एवं न्यायाधीश की जवाबदेही

भारती दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में 484 धाराएं थी अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 होंगी। 177 धाराओं में बदलाव किया गया है। 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं। 39 उप धाराएं शामिल की गई हैं। 14 धाराओं को निरस्त कर हटाया जा चुका है। पुलिस द्वारा दंडित कार्रवाई में सीआरपीसी में कोई समय निर्धारित नहीं था। पुलिस को मिली शिकायत पर वह दस साल बाद भी संज्ञान ले सकती थी। अब यदि प्रारंभिक जांच में पुलिस आश्वस्त है तो तीन दिन के भीतर छोटे आपराधिक मामलों में एफआईआर दर्ज करनी होगी। तीन से सात साल की सजा मामले में प्रांरिभक जांच में आरोप सही पाए जाने पर 14 दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करना होगी। जिला मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजे जाने की समयसीमा निर्धारित नहीं थी। अब 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट सौंपनी होगी। मेडिकल रिपोर्ट सात दिन के भीतर थाने और न्यायालय में भेजनी है। पहले 60 से 90 दिन में आरोपपत्र दाखिल करने का प्रावधान था। अब तय समयसीमा के बाद सिर्फ कोर्ट की मंजूरी पर ही 90 दिन की अतिरिक्त मोहलत मिलेगी। मजिस्ट्रेट 14 दिन के भीतर चार्जशीट पर अनिवार्य रूप से संज्ञान लेंगे। वकील को किसी भी मामले में सिर्फ तीन स्थगन प्राप्त होगा, इसे अधिवक्ताओं में जवाबदेही बढ़ेगी। मुकदमे की सुनवाई समाप्त होने के 45 दिन के भीतर न्यायाधीश को निर्णय देना होगा। इसी तरह दया याचिका के मामलों में उच्चतम न्यायालय से अपील खारिज करने के 30 दिन के भीतर ही दया अर्जी करनी होगी। यह किसी तीसरे पक्ष के बजाय पीड़ित या फरियादी की ओर से ही होगी। गैरमौजूदमी में ट्रायल मामले में यदि 90 दिन में व्यक्ति उपस्थित नहीं होता है तो भी न्यायालय सुनवाई करेगा। न्यायालय सजा भी सुनाएगा। इससे ऐसे सजायाफ्ता जो देश से बाहर हैं, उन्हें वापस लाना आसान होगा।

डिजिटल सबूत पर जोर

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 167 धाराएं थीं। इसकी जगह 170 धाराएं बनी हैं। 24 धाराओं में बदलाव किया गया है। दो नई धाराएजोड़ी गई हैं। 6 धाराएं हटाई गई हैं। सबूतों की वीडियो रिकॉर्डिंग और सभी दस्तावेजों के डिजिटलीकरण की व्यवस्था अनिवार्य की गई है। पुलिस घर में कोई तलाशी या जब्ती करती है उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग होगी। ऑनलाइन बयान लेने के साथ इसकी रिकॉर्डिंग अनिवार्य होगी। इससे बयान में बार-बार बदलाव की गुंजाइश न रहे। इसकी तीन कॉपी पुलिस थाने, जज और हॉस्पिटल में 24 घंटे के भीतर पहुंचानी होगी। ई-एफआईआर की व्यवस्था विकसित की गई है, जिसमें दो दिन के भीतर पुलिस को पीड़ित के घर जाकर बयान दर्ज करना होगा।

राज्य और जिला स्तर पर स्वतंत्र निदेशक अभियोजन बनेंगे। कोई भी वाद उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय में अपील योग्य है या नहीं, इस पर उसकी अनुशंसा को भी वरीयता मिलेगी। गिरफ्तार व्यक्तियों की सूचना हर पुलिस स्टेशन पर अनिवार्य रूप से होगी। पीड़ित के लिए नुकसान की क्षतिपूर्ति का अधिकार दिया गया है। नये कानून में यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई भी मुकदमा राज्य के कहने पर तब तक कोर्ट निरस्त नहीं कर सकती जब तक की पीड़ित को सुना न जाए। भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में बदलाव की मांग सालों से की जा रही थी। नये अधिनियम के जरिए आपराधिक न्याय प्रणाली के विरोधाभासों को जहां दूर किया गया है वहीं पुलिस और न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है।

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