अनुशासित हो AI
कॉलिंस अंग्रेजी शब्दकोष ने एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) को इस इस साल का सर्वश्रेष्ठ शब्द बताया है। कृत्रिम मेधा धीरे-धीरे हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन रही है। ट्रैफिक जाम से लेकर मौसम के पूर्वानुमान, वस्तुओं के उत्पादन से लेकर ऑपरेशन थियेटर में मशीनी दिमाग मददगार है। कविताएं लिखने से लेकर शोध संकल्पनाओं को अंतिम रूप देने में चैटजीपीटी का धडल्ले से प्रयोग हो रहा है। जेनरेटिव एआई से तस्वीर, शब्द और आवाज को हजारों शक्ल दी जा सकती है। एआई एल्गोरिदम कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों की प्रारंभिक अवस्था में पहचान तय करने में सहायक हैं। मिट्टी की नमी जांचने से लेकर खरपतवारों का संभावित खतरा बताने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता उपयोगी है। एआई एक्सल से लेकर चैटबॉट कार्यालयीन कामकाज को आसान बना रहे हैं।
कंप्यूटर विज्ञान और इंटरनेट के इस नवाचार की ताकत में ही कमजोरियां भी छिपी हैं। एआई पर चलने वाले ‘डीपफेक’ से अभिनेत्री रश्मिका मंदाना समेत कई हस्तियों की छवि धुमिल करने की कोशिश हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कृत्रिम मेधा से होने वाली अनैतिक गतिविधियों पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। कई एआई टूल ऐसे व्यक्ति (अवास्तविक इंसान ) की तस्वीर बना सकते हैं जो दुनिया में कभी आया ही नहीं। इन तस्वीरों का इस्तेमाल लोगों को गुमराह करने के लिए हो रहा है।
मशीनी दिमाग से चलने वाले उपकरण विशुद्ध रूप से डाटा से संचालित होते हैं। एआई कंपनियों में अधिक से अधिक डाटा हासिल करने की होड़ इसी का नतीजा है। इस दौर में आपकी रेटिना, अंगूठे का निशान ही निजी डाटा नहीं है। आप गूगल पर क्या खोजते-पढ़ते हैं। मोबाइल और लैपटॉप पर कौन से एप और सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करते हैं। सोशल मीडिया पर तैर रही पोस्ट पर कितनी देर ठहरे, यह टेक कंपनियों के लिए बेशकीमती डाटा है। इसके आधार पर आपको वस्तुएं और उत्पाद पेश किए जाते हैं। यह हमारी सोच और स्वभाव को एआई के जरिए हांकने जैसा है।
ऐसे में यदि समय रहते कृत्रिम मेधा को अनुशासित नहीं किया गया तो यह पक्षपातपूर्ण सामग्री पैदा करेगी। अपने शुरुआती दौर में ही यह यह निजिता हनन के साथ श्रम बाजार में उथलपुथल मचा रही है। इन आशंकाओं के बीच भारत, अमेरिका, यूरोपीय संघ समेत दुनिया भर में एआई नियमन पर हलचल तेज है। अमेरिका में बाइडन प्रशासन ने 30 अक्टूबर 2023 को कृत्रिम बुद्धिमत्ता के नियमन से जुड़े कार्यकारी आदेश को मंजूरी दी है। इसे ‘ब्लुप्रिंट फॉर एन एआई बिल ऑफ राइट्स’ नाम दिया गया है। किसी भी देश द्वारा कृत्रिम बुद्धि को नियमन के दायरे में लाने से जुड़ी यह पहली कवायद है। व्हाइट हाउस का दावा है कि राष्ट्रपति बाइडन का कार्यकारी आदेश कृत्रिम बुद्धि की गलत इस्तेमाल पर रोक लगाएगा। इससे कॉपीराइट, नकल (डीपफेक) और निजता के उल्लंघन पर पर रोक लगेगी। यह आदेश इंटरनेट पर मौजूद सामग्री को उठाकर उसके संकलन और नकल की प्रवृत्ति पर लगाम लगाता है। विश्व में पहली बार बनावटी बुद्धि से तैयार होने वाली सामग्री को निगरानी के दायरे में लाया गया है। अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय कंटेंट की चोरी रोकने के लिए दिशानिर्देश बनाने जा रही है। एआई से सृजित सामग्री पर वाटरमार्किंग को अनिवार्य किया जा रहा है। अमेरिका में अब एआई कंपनियों को अपने उत्पाद सार्वजनिक करने से पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी। उन्हें यह बताना होगा कि उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा के लिए कौन से उपाय हैं। द नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड एंड टेक्नोलॉजी इससे जुड़े मानक विकसित करेगा। इसे सभी टेक कंपनियों को मानना होगा। आंतरिक सुरक्षा विभाग इस बात की निगरानी रखेगा कि यह मानक पारदर्शिता से लागू हो रहे हैं नहीं। यहां तक की अमेरिकी सेना भी मशीनी बुद्धि का सीमित दायरे में उपयोग करेगी। इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद निर्देशिकाएं तैयार करेगा।
दो साल से जारी बहस के बाद इस साल मई में यूरोपीय संसद ने एआई एक्ट का मसौदा पेश किया था। यूरोपीय संघ के सदस्य देश 8 दिसंबर 2023 को इसे लागू करने पर सैद्धांतिक रूप से सहमत हो गए हैं। ईयू के कानून में कृत्रिम मेधा के लिए प्रतिबंधित, उच्च जोखिम और सामान्य क्षेत्र तय किए गए हैं। कोई दल और कंपनी चुनाव के दौरान मतदाताओं को प्रभावित न करे, इसके लिए सोशल मीडिया में चुनाव प्रचार को उच्च जोखिम सूची में डाला गया है। बनावटी बुद्धि से तैयार सामग्री के साथ कंपनियों को घोषणा और स्पष्टीकरण देना होगा। इसके क्रियान्वित होने से मशीनी दिमाग के जरिए लोगों की जिंदगी में गैर जरुरी दखल देने पर कंपनी पर उसकी कमाई का छह प्रतिशत जुर्माना लगेगा।
भारत में विभिन्न उद्योग संगठन कृत्रिम मेधा के लिए नियामकीय तंत्र की जरुरत पर बल दे चुके हैं। नीति आयोग ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर 2018 रणनीतिक दृष्टिपत्र प्रकाशित किया था। इस रपट में बताया गया है कि भारत में कृत्रिम मेधा से शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, स्मार्ट सिटी एवं आधारभूत संरचना तथा आधुनिक परिवहन की शक्ल कैसे बदल सकती है। इसमें एआई जनित चुनौतियों व समाधान का भी उल्लेख है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने 2017 में एआई पर एक कार्यदल का गठन किया था। कार्यदल द्वारा की गई अहम सिफारिशों में अंतर मंत्रालयीन कृत्रिम मेधा मिशन (एन-एआईएम) का गठन प्रमुख है। रक्षा क्षेत्र में एआई के उपयोग व जोखिम की पड़ताल करने के लिए 2018 में एक कार्यदल का गठन किया गया। सैन्य कृत्रिम मेधा परिषद (डीएआईसी), सैन्य कृत्रिम मेधा परियोजना एजेंसी (डीएआईपीए) के गठन तथा डाटा प्रबंधन,प्रशिक्षण व पृथक बजट से जुड़े अहम सुझाव कार्यदल ने दिए हैं। कार्यदल की सिफारिश के आधार पर डीएआईसी का गठन भी किया जा चुका है। 23 साल पुराने सूचना प्रौद्योगिकी कानून की जगह लेने वाले डिजिटल इंडिया अधिनियम में एआई के नियमन से जुड़े प्रावधान शामिल किए जा रहे है। इसमें एआई की उच्च जोखिम तकनीक की पहचान करने के साथ एल्गॉरिथम की जवाबदेही तय करने की बात कही गई है।
एआई पर वैश्विक नियमन का मुद्दा भी अहम है। अक्टूबर में ब्रिटेन की मेजबानी में वैश्विक कृत्रिम बुद्धिमत्ता सम्मेलन आयोजित हुआ। यहां अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और चीन समेत 30 देश कृत्रिम बुद्धिमत्ता के वैश्विक नियमन पर सहमत हुए हैं। भारत ने कुछ दिन पहले ही ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (जीपीएआई) शिखर सम्मेलन की मेजबानी की है। 2020 में स्थापित जीपीएआई के 29 सदस्य देश हैं। भारत जीपीएआई के जरिए संयुक्त राष्ट्र सलाहकार समूह और यूके एआई सुरक्षा शिखर सम्मेलन को एक मंच पर लाने में सफल हुआ है। इससे पहले जी-20 के दिल्ली घोषणा पत्र में मानवता के हित में कृत्रिम मेधा के इस्तेमाल का आह्वान किया गया था। भारत की पहचान आईटी उद्योग के वैश्विक अगुआ की है। कंप्यूटर आधारित ज्ञान की समृद्ध बुनियाद पर खड़े देश के लिए कृत्रिम बुद्धि रोजगार और सामाजिक उन्नति के नये अवसर लाएगी। देश की आधी से अधिक आबादी 25 साल से कम उम्र की है। यदि हम जल्द ही संभावनाओं भरे इस क्षेत्र को अनुशासित कर लेते हैं तो यह भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सामाजिक बदलाव का वाहक बनेगी।