भारतीयता के साधक श्रीगोपाल व्यास
वर्ष 2010 में रायपुर में नारद जयंती के कार्यक्रम में पहली बार श्रीगोपाल व्यासजी से भेंट हुई। कार्यक्रम के पश्चात उन्होंने सबसे कुशलक्षेम की , वहां से निकलते समय रास्ते में मेरे एक सज्जन ने कहा वह जो सफेद कुर्ते में सज्जन थे, वह राज्यसभा सांसद हैं लेकिन उन्होंने जो कपड़े पहने हैं वह काफी पुराने थे। मितव्ययता और सादगीपूर्ण जीवन उनके व्यक्तित्व को अलंकृत करते थे।
मृदुभाषी, श्रेष्ठ स्वयंसेवक, अध्येयता एवं आदर्श जनप्रतिनिधि प्रत्येक भूमिका में उन्होंने ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया जो समाज जीवन को वर्षों तक प्रेरित करेगा। श्रीगोपाल व्यास का जन्म 15 फरवरी 1932 को राजस्थान के नागौर में हुआ। पिता श्री पूनमचंद व्यास तथा श्रीमती जेठीबाई व्यास से मिले संस्कार उनके जीवन में हमेशा परिलक्षित हुए। 1945 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने। उन्होंने जबलपुर से इंजीनियरिंग ऑनर्स किया। संघ पर लगे प्रतिबंध हटाने के लिए वह कॉलेज में सत्याग्रह करते रहे। 1954 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद हिंदुस्तान मोटर्स (फैक्ट्री) में उच्च पद पर पदस्थ हुए। 1957 में भिलाई स्टील प्लांट जैसे देश के प्रतिष्ठित सार्वजनिक उपक्रम में उन्हें इंजीनयर के रूप में नियुक्ति मिली। कार्य के प्रति उनकी दक्षता का ही परिणाम रहा कि 1960-61 में वह सोवियत संघ प्रतिनियुक्ति पर भेज दिए गए। यहाँ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान मेरा जूता है जापानी.. गीत बजाकर भारत का परिचय दिया जा रहा था, इसे रुकवाकर उन्होंने रानी दुर्गावती पर केंद्रित गीत “दुर्गावती जब रण में निकली, हाथों में थीं तलवारें दो” गाकर भारत के गौरवशाली इतिहास का परिचय कराया। इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स के सदस्य के रूप में उन्होंने देश की अवसंरचना विकास से जुड़ी नीतियों पर महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
आपातकाल (1975-1977) के दौरान श्रीगोपाल व्यास को मीसाबंदी के रूप में रायपुर केंद्रीय जेल में रखा गया। 1984 में नौकरी छोड़कर वह संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बने। उन्होंने तत्कालीन महाकौशल प्रांत के प्रांत कार्यवाह, प्रांत प्रचारक, क्षेत्र प्रचारक आदि दायित्वों का निर्वहन किया। इस दौरान छत्तीसगढ़ के प्रवास पर नियमित अंतराल पर आते थे। आद्य सरसंघचालक पूजनीय डॉ केशल बलिराम हेडगेवार की जन्मशताब्दी वर्ष में उन्होंने जबलपुर से रायपुर पदयात्रा की। 2002-2006 तक विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त महामंत्री रहे। उन्होंने केन्या, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, नार्वे, नेपाल, हॉलैंड,थाईलैंड, श्रीलंका, सिंगापुर, मलेशिया, त्रिनिदाद, मॉरिशंस जैसे देशों की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने हिंदुत्व व भारतीयता का धवल पक्ष उन्होंने उन देशों में प्रमुखता से रखा।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद श्रीगोपाल व्यास ने विधिशास्त्र का भी अध्ययन किया, सार्वजनिक जीवन में उन्हें लोकहित से जुड़े विषयों के न्यायिक समाधान में इसका लाभ भी मिला। तीन वर्ष तक उन्होंने वकालत की। वह 2006-2012 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। तत्कालीन राष्ट्रपति के साथ स्पेन, पोलैंड तथा लोकसभा अध्यक्ष के साथ मैक्सिको के प्रवास पर गए। इस दौरान उन्होंने भारत के पर्यावरण अनुकूल विकास तथा ग्राम्य विकास की श्रेष्ठ प्रथाओं को वहां की सरकारों से साझा किया। वह एक आदर्श राज्यसभा सदस्य के रूप में हमेशा स्मरण किए जाते रहेंगे। राज्यसभा में उन्होंने हमेशा जनहित के मुद्दों को स्वर दिया। प्राथमिक विद्यालयों में यौन शिक्षा पाठ्यक्रम लागू करने की यूपीए सरकार की योजना के विरुद्ध उन्होंने बहुत ही प्रभावी तर्क देते हुए अपनी बात रखी। उनके तर्क से कांग्रेस और प्रतिपक्ष के कई लोग सहमत थे। इससे तत्कालीन सरकार को अपना कदम वापस लेना पड़ा। वह भारत और भारतीयता के प्रबल पक्षधर थे। राज्यसभा में वह इंडिया शब्द हटाने को लेकर विधेयक भी लेकर आए थे। जनहित के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का आकलन इसी बात से किया जा सकता है कि उनकी सांसद निधि प्रत्येक वर्ष समय से पहले खर्च हो जाती थी। कार्यकाल के अंतिम वर्ष में उन्होंने बेमेतरा के पास स्थिति सरस्वती शिशु मंदिर के आग्रह पर संस्था को 5 लाख रुपए भवन निर्माण हेतु देना सुनिश्चित किया। इसी बीच उनसे भारतीय मजदूर संघ भिलाई के कार्यकर्ता मिलने आए। उन्होंने आग्रह किया कि आप भामसंघ के संस्थापक सदस्य रहे हैं, भिलाई में कार्यालय निर्माण हेतु कुछ सहयोग चाहिए। चूंकि श्रीगोपाल व्यास जी के संसदीय कोष में एक रुपए नहीं बचा था, इस पर उन्होंने विद्या भारती के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर मार्ग निकाला। चूंकि विद्यालय के लिए भूमि तब तक तय नहीं हुई थी, इसलिए यह राशि सहमति से श्रमिक उत्थान पर केंद्रित भामसंघ के भवन निर्माण हेतु दी गई।
नियमित रूप से डायरी लिखना श्रीगोपाल व्यास की दिनचर्या में शामिल था। यह डायरियां उनके जीवन के अनुशासन और संगठन के प्रति निष्ठा का जीवंत प्रमाण हैं। कुछ पैसे बचाने के लिए भी कई किलोमीटर तक पैदल प्रवास उनके स्वभाव में था। आपातकाल के दौरान उनके द्वारा लिखी गई सत्यमेव जयते पुस्तक लोकतंत्र के काले अध्याय की पीड़ा को व्यक्त करने वाला ऐसी पुस्तक है जो नई पीढ़ी को भी पढ़ना चाहिए। इस पुस्तक में उन्होंने कविता तथा व्यंग शैली में इंदिरा सरकार की कारगुजारियों को बयां किया। 2010 में उन्होंने संसद के झरोखे से पुस्तक भी लिखी। राज्यसभा सदस्य के रूप में कार्यकाल समाप्त होने के दौरान उनका विदाई भाषण भावुक करने वाला था । उन्होंने राज्यसभा सचिवालय के कर्मचारियों, वहां नियुक्त सुरक्षाकर्मियों से लेकर पक्ष और प्रतिपक्ष के सभी साथियों का जिस तरह धन्यवाद ज्ञापित किया वह उनकी स्वीकार्यता का उदाहरण है। कुछ दिन पूर्व ही भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीजगत प्रकाश नड्डा रायपुर प्रवास के दौरान उनसे मिलने पहुंचे थे। स्वास्थ्य ठीक न होते हुए भी कार्यकर्ताओं से भेंट उन्हें ऊर्जावान बना देती थी। अपने जीवन के हर पक्ष में राष्ट्र को अग्रणी रखने वाले श्रीगोपाल व्यास का 7 नवंबर को स्वर्गारोहण हुआ, काया रूप में उपस्थित न होते हुए भी उनकी देह राष्ट्र सेवा हेतु प्रवेश करने वाले प्रशिक्षु चिकित्सकों के लिए ज्ञान व शोध का उपक्रम बनेगी।