आज ही के दिन लागू हुआ था सूचना का अधिकार, कांग्रेस ने बताया मनमोहन सरकार की उपलब्धि

रायपुर/12 अक्टूबर 2025। प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने पत्रकार वार्ता लेकर कहा कि
आज देश में आम आदमी को सशक्त बनाने वाले महत्वपूर्ण कानून सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून को लागू हुये आज 20 वर्ष पूरे हो गये।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और यूपीए चेयरपर्सन श्रीमति सोनिया गांधी के नेतृत्व में आज ही के दिन 12 अक्टूबर 2005 को कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने देश में सूचना के अधिकार का कानून लागू किया था।
मनमोहन सरकार ने देश को जो महत्वपूर्ण कानून दिये उनमें से सूचना का अधिकार पहला था, इसके साथ ही मनरेगा (2005), वन अधिकार अधिनियम (2006), शिक्षा का अधिकार (2009), भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा का अधिकार अधिनियम (2013) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) जैसे कानून बनाये गये। सूचना के अधिकार कानून का उद्देश्य नागरिकों को सरकारी विभागों और सार्वजनिक प्राधिकरणों के पास मौजूदा जानकारी हासिल करने का अधिकार देना था, ताकि शासकीय और सार्वजनिक कामों की पारदर्शिता बन पाये। इस कानून ने नागरिकों को उनके हक जैसे राशन समय पर पेंशन, बकाया मजदूरी और छात्रवृत्तियां दिलाने में मदद की है। इसने सुनिश्चित किया कि सबसे गरीब व्यक्ति को जीवन की बुनियादी जरूरतों से वंचित न किया जाये।
सरकार सूचना के अधिकार कानून को कमजोर कर रही है
देश में जब से भाजपा सरकार बनी सूचना के अधिकार कानून को कमजोर करने की साजिश रची गयी। 2019 में एक संशोधन करके इस कानून की स्वतंत्रता को कमजोर किया गया तथा इस कानून पर कार्यपालिका के प्रभाव को बढ़ा दिया गया।
2023 – डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम और धारा 44(3) लागू कर डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम ने आरटीआई की धारा 8 (1) (र) में संशोधन किया, जिससे “व्यक्तिगत जानकारी की परिभाषा का दायरा बहुत बढ़ा दिया गया। पहले, “व्यक्तिगत जानकारी“ जनहित में होने पर उजागर की जा सकती थी, लेकिन अब संशोधित प्रावधान कहता है- “कोई भी ऐसी जानकारी जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित हो, प्रकट नहीं की जाएगी।“ इससे सार्वजनिक कर्तव्यों या सार्वजनिक धन के उपयोग से संबंधित जानकारी का खुलासा भी रोका जा सकता है, जो आरटीआई के पारदर्शिता सिद्धांत के विरुद्ध है।
पसर्नल डाटा प्रोटक्शन अधिनियम के लागू होने के बाद महत्वपूर्ण सार्वजनिक डेटा को “निजी“ मानकर मतदाता सूची, व्यय विवरण या अन्य जनहित से जुड़ी सूचनाओं की सूचना देने से इनकार का रास्ता खोल देता है। जबकि इसी कानून से एमपी फंड मनरेगा की फर्जीवाड़ा तथा राजनैतिक दलो की फंड की गड़बड़ियां उजागर हई थी।
सूचना आयोग में पद नहीं भरे जा रहे
केन्द्रीय सूचना आयोग एवं राज्य सूचना आयोग में खाली पद नहीं भरे जा रहे देश के सूचना आयोग में 11 स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल दो पद भरे है शेष पद खाली है।
छत्तीसगढ़ सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त एवं तीन सूचना आयुक्त के पद है, लेकिन दो सालो से वहां मुख्य का पद खाली है, तथा दो सदस्य आयुक्त के पद रिक्त है। राज्य सूचना आयोग में केवल 1 सदस्य आयुक्त ही कार्यरत है।
गड़बड़िया उजागर करने वालो पर हमले हो रहे
सूचना के अधिकार का उपयोग करने वाले व्हिसल ब्लोअर्स पर हमले हो रहे, उनको सुरक्षा नहीं दी जा रही व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटक्शन मनमोहन सरकार ने दोनो सदनो में पारित कराया था, लेकिन मोदी सरकार ने लागू नहीं किया।
भोपाल की कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् शहला मसूद, जो अवैध खनन को उजागर करती थीं, की उनके ही घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले की सीबीआई जांच में पाया गया कि आरोपियों में एक इंटीरियर डिज़ाइनर भी शामिल था। सतीश शेट्टी, जो भूमि घोटालों को उजागर करने के लिए जाने जाते थे, उनपर सुबह की सैर के दौरान धारदार हथियारों से हमला कर हत्या कर दी गई। सीबीआई जांच में इसमें रियल एस्टेट माफिया की संलिप्तता सामने आई।
ऐसे मामले इस बात की भयावह याद दिलाते हैं कि आरटीआई कार्यकर्ताओं को कितने खतरों का सामना करना पड़ता है। अनेक कार्यकर्ता और नागरिक जो आरटीआई का उपयोग करते हैं. उन्हें उत्पीडन, धमकियों और हमलों का शिकार होना पड़ा है। इससे लोगों के भीतर भय का माहौल बना है और नागरिक आरटीआई का निर्भयता से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मांग करती है कि
- 2019 के संशोधनों को निरस्त कर सूचना आयोगों की स्वतंत्रता बहाल की जाए और आयुक्तों के लिए 5 वर्ष का निश्चित कार्यकाल व सुरक्षित सेवा शर्तें सुनिश्चित की जाएँ।
- डीपीडीपी अधिनियम की उन धाराओं (धारा 44(3)) की समीक्षा व संशोधन किया जाए जो आरटीआई के जनहित उद्देश्य को कमज़ोर करती हैं।
- केंद्र और राज्य आयोगों में सभी रिक्तियाँ पारदर्शी व समयबद्ध प्रक्रिया के माध्यम से तुरंत भरी जाएँ।
- आयोगों के लिए कार्य निष्पादन मानक तय किए जाएँ और निपटान दर की सार्वजनिक रिपोर्टिंग अनिवार्य की जाए।
- व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन अधिनियम को पूर्ण रूप से लागू कर आरटीआई उपयोगकर्ताओं और व्हिसल ब्लोअर को सशक्त सुरक्षा प्रदान की जाए।
- आयोगों में विविधता सुनिश्चित की जाए पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और महिला प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।
आरटीआई आधुनिक भारत के सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक सुधारों में से एक है। इसकी कमज़ोरी, लोकतंत्र की कमजोरी है। आरटीआई की 20वीं वर्षगांठ पर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस कानून की रक्षा और सशक्तिकरण के अपने संकल्प को दोहराती है. ताकि हर नागरिक निडर होकर सवाल पूछ सके और समयबद्ध व प्रभावी उत्तर प्राप्त कर सके।
पत्रकारवार्ता में वरिष्ठ कांग्रेस नेता सत्यनारायण शर्मा, पूर्व मंत्री मो. अकबर, पूर्व मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया, पूर्व सांसद छाया वर्मा, प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गैदू, वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेन्द्र तिवारी, गिरीश देवांगन, प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला, पूर्व विधायक विकास उपाध्याय, महामंत्री सकलेन कामदार, वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर, सुरेन्द्र वर्मा, घनश्याम राजू तिवारी, डॉ. अजय साहू, प्रवक्ता नितिन भंसाली, अजय गंगवानी उपस्थित थे।






