मोबाइल, टीवी और इंटरनेट हमारे रोजमर्रा के जीवन की सबसे बुनियादी आवश्यकता बन चुके हैं। शिक्षा,
स्वास्थ्य, मनोरंजन समेत मानवीय जीवन के कई पक्ष दूरसंचार सेवाओं पर टिके हैं। आम उपभोक्ता को जहां
सस्ती और सुगम दूरसंचार सेवाओं की दरकार रहती है वहीं सरकार के लिए यह राजस्व का भी जरिया है।
अकेले इस क्षेत्र में एक करोड़ 20 लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं। अर्थव्यवस्था का इतना महत्वपूर्ण क्षेत्र अब
तक औपनिवेशिक काल की नीतियों से संचालित हो रहा था। दूरसंचार के नियमन हेतु भारतीय टेलीग्राफ
अधिनियम 1885 के साथ ही वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम 1933 और टेलीग्राफ तार अधिनियम 1950 लागू
थे। इनकी जगह दूरसंचार अधिनियम (टेलीकम्युनिकेशन एक्ट) 2023 अस्तित्व में आ चुका है। पिछले दिनों
संसद ने इसे मंजूरी दी है। यह भारतीय दूरसंचार नियामक अधिनियम 1997 में भी संशोधन करता है।
मोबाइल, इंटरनेट और संचार उपग्रह आधारित विभिन्न सेवाएं इसके दायरे में होंगी।
उपभोक्ता हितों की रक्षा
टेलीफोन, रेडियो, टीवी और इंटरनेट सेवाओं के जरिए विभिन्न संदेश प्रेषित करने में रेडियो और सूक्ष्म तंरग
माध्यम बनती हैं। इन तरंगों को एक निश्चित आवृत्ति में भेजना होता है। यह निर्दिष्ट आवृत्ति (डेजिग्नेटेड बैंड)
का समूह स्पेक्ट्रम कहलाता है। दूरसंचार अधिनियम 2023 स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया में बदलाव के साथ कई
चुनौतियों का समाधान करता है। इसके सबसे महत्वपूर्ण प्रावधानों में उपभोक्ता सुरक्षा अहम है। इस अधिनियम
के क्रियान्वित होने के साथ बिना केवाईसी सिम की खरीद-बिक्री नहीं होगी। इससे फर्जी सिम कार्ड पर रोक
लगेगी। सिम लेने के लिए अब बायोमैट्रिक अनिवार्य होगा। यदि कोई व्यक्ति गलत जानकारी देकर फर्जी तरीके
से सिम लेता है या दूरसंचार सेवाओं का उपयोग करता है तो उस पर तीन साल की सजा और 50 लाख रुपये
तक के जुर्माने का प्रवधान है। कुछ समय पहले देश में सिमबॉक्स की कई घटनाएं सामने आई हैं। इसमें
इंटरनेट आधारित एक खास हार्डवेयर डिवाइस से अंतर्राष्ट्रीय कॉल को स्थानीय नंबर में बदल दिया जाता है।
इसी तरह स्पूफिंग (सॉफ्टवेयप के जरिए फोन हैक करने) करने वालों पर भी रोक लगेगी। उपभोक्ताओं को
गैरजरुरी फोन कॉल और सेवाओं से बचाव के लिए डू नॉट डिस्टर्ब (डीएनडी) सेवाओ को वैधानिक दर्जा मिलेगा।
साझा केबल कॉरिडोर बनेगा
किसी जगह पर केबल या ऑप्टिकल फाइबर बिछाने में कई अड़चने आती हैं। यह विधेयक राज्य सरकार और
जिलाधिकारी को नियामकीय व्यवस्था में शामिल करता है। इससे स्थानीय स्तर पर समस्याओं का व्यावहारिक
समाधान निकालने में मदद मिलेगी। पहली बार एक साझा केबल कॉरिडोर विकसित करने की बात कही गई है।
इससे नहर और हाईवे के किनारे केबल बिछाने की व्यवस्था सुगम बनेगी। अभी दूरसंचार सेवाओं के लिए
कंपनियों को सैकड़ों लाइसेंस लेने पड़ते हैं। बिल के जरिए लाइसेंस प्रक्रिया को आसान बनाया गया है। अब
दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने, दूरसंचार नेटवर्क का संचालन और विस्तार तथा रेडियो उपकरणों के रखरखाव के
लिए सिर्फ तीन लाइसेंस की जरुरत होगी। इससे सौ से अधिक लाइसेंस प्रक्रिया से निजात मिलेगी।
प्रशासनिक आधार पर स्पेट्रकम का आवंटन
दूरसंचार एक ऐसी सेवा है, जिसमें इस्तेमाल होने वाला स्पेक्ट्रम कई लोग उपयोग में ला सकते हैं। सेटेलाइट से
बेस स्टेशन पर जो स्पॉट बीम आता है, वह समान आवृत्ति पर कई लोगों द्वारा उपयोग में लाया जा सकता है।
इस तकनीकी सुविधा को देखते हुए दुनिया के अधिकांश देशों में सेटेलाइट स्पेक्ट्रम का आवंटन प्रशासनिक
आधार पर होता है। सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ भी सुझाव दे चुकी है कि जहां तकनीकी अड़चन न
हो, वहां प्रशासनिक आधार पर स्पेक्ट्रम दिया जाना चाहिए। दूरसंचार अधिनियम 2023 के प्रावधान के मुताबिक
लगभग 19 क्षेत्रों को प्रशासनिक आधार पर स्पेक्ट्रम प्रदान किया जाएगा। इसके अतिरिक्त किसी क्षेत्र को
प्रशासनिक आवंटन किया जाना है तो संसद की अनुमति लेना होगा। पुलिस, वन, सेना, पावर ग्रिड, मेट्रो, रेलवे
व अन्य संस्थानों को अभी प्रशासनिक आधार पर ही स्पेक्ट्रम का आवंटन होता है।
कंपनियों का एकाधिकार खत्म होगा
दूरसंचार अधिनियम का विरोध कर रहे एक तबके का तर्क है कि प्रशासनिक आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटन से
सरकार को राजस्व का घाटा होगा। इससे सरकार का नियंत्रण बढ़ेगा। यह तर्क इसलिए निराधार हैं क्योंकि
स्पेक्ट्रम की नीलामी प्रक्रिया की वजह से जहां दूरसंचार सेवाओं पर अधिक बोली लगाने वाली कंपनियों का
एकाधिकार रहता था। उच्चतम दर पर स्पेक्ट्रम हासिल करने के बाद इसका बोझ कंपनियां उपभोक्ताओं पर
डालती थीं। वहीं प्रशासनिक आवंटन से दूरसंचार क्षेत्र में नये सेवा प्रदाताओं को अवसर मिलेगा। अंतत: इसका
लाभ उपभोक्ताओं को मिलेगा। वैसे भी स्पेक्ट्रम नीलामी मोटे तौर पर तब असरदार होती है, जब आपूर्ति से
अधिक मांग होती है। स्पेक्ट्रम की तुलना कोयले या किसी खनिज धातु से करना बेईमानी है। दूरसंचार
अधिनियम 2023 के अस्तित्व में आने से पहले स्पेक्ट्रम आवंटन और उससे जुड़ी तकनीक के मध्य संबद्धता
नहीं थी। यदि स्पेक्ट्रम 4जी के लिए लिया गया था, लेकिन तकनीक का उन्नयन 5जी के स्तर पर हो गया हो
तो समान स्पेक्ट्रम के उपयोग की अनुमति नहीं थी। इस कमी को दूर किया गया है।
पंजाब यूनिवर्सिटी के भौतिक शास्त्र विभाग में प्रोफेसर डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी के मुताबिक ‘‘दूरसंचार में उपयोग
विदुयुत चुंबकीय तरंगें रेडियो, सूक्ष्म तरंगे, अवरक्त, पैराबैंगनी, दृश्य प्रकाश, गामा किरणें और एक्स रे जैसे सात
रूप में होती हैं। इन्हें एक निश्चित आवृत्ति में ही भेजा जाता है। यह आवृत्ति स्पेक्ट्रम कहलाती है। तीन किलो
हर्ट्ज़ से 300 गीगा हर्ट्ज़ तक इनकी आवृत्ति रेंज होती हैं। स्पेक्ट्रम की आवृत्ति जितनी बढ़ाई जाती है, संदेशों के
आवाजाही की गति उतनी ही बढ़ेगी। आज भारत सबसे तेजी से 5जी तकनीक का उपयोग कर रहा है। दूरसंचार
सेवाओं में 800 से 2,300 मेगा हर्ट्ज़ आवृत्ति रेंज इस्तेमाल होता है। मोबाइल और दूरसंचार सेवा प्रदाता के बीच
जीपीआरएस (जनरल पैकेज रेडियो सर्विस) के जरिए रेडियो तरंगों का आदान-प्रदान होता है। संचार उपग्रह में
लगा ट्रांसमीटर सूचनाएं लेता है, यह एंटिना में लगे सेंसर से प्राप्त संकेत को आगे प्रेषित करता है। यहां से यह
ट्रांसमिशन मीडियम (मेटल वायर, ऑप्टिकल फाइबर या सेटेलाइट रेडियो) से होते हुए यह रिसीवर तक पहुंचती
हैं, जो कि संदेश को समझने योग्य भाषा में परिवर्तित करता है।’’
शिकायत निवारण की मजबूत व्यवस्था
संचार तकनीक जैसे-जैसे आधुनिक हो रही है, इससे जुड़ी शिकायतों के बीच उपभोक्ता अधिकारों की मांग बढ़
है। टेलीकम्युनिकेशन एक्ट में ऑनलाइन विवाद समाधान तंत्र की व्यवस्था की गई है। इससे उन आर्थिक
मामलों से जुड़ी धोखाधड़ी के शिकायत और समाधान की सुविधा होगी, जहां दूरसंचार आधारित सेवाएं शामिल
होंगी। इसके लिए स्टैंडर्ड साइबर सिक्यूरिटी नेटवर्क के लिए कानूनी ढांचा बनाने का प्रावधान किया गया है।
ओटीटी मैसेंजिंग एप जैसे व्हाट्सप, सिग्नल और टेलीग्राम को दूरसंचार अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया
है। नये डिजिटल इंडिया एक्ट में इनके लिए प्रभावी कानूनी ढांचा बनाये जाने का संकेत सरकार की ओर से
दिया जा चुका है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले हेल्थ एप, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी के
अंतर्गत आने वाले इंटरनेट एप और वित्तीय सेवाओं पर आधारित एप के लिए भी नियामकीय व्यवस्था विकसित
करनी होगी। यह कानून राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में सरकार को दूरसंचार सेवाओं पर नियंत्रण की अनुमति देता
है। आज जिस तरह आतंकी और समाज को तोड़ने वाली शक्तियां संचार सेवाओं को हथियार बना रही हैं, ऐसे
में विशेष परिस्थितियों में ऐसे अधिकार लाभकारी होंगे।
स्पेक्ट्रम एक ऐसा संसाधन है, जिसका समावेशी दोहन आर्थिक और समावेशी तरक्की का आधार बनेगा। कुछ
सालों पहले प्रकृति का यह अनमोल उपहार 2जी घोटाले के रूप में सबसे बड़े भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गया था।
नीतिगत स्पष्टता न होने से जहां दूरसंचार क्षेत्र में कुछ कंपनियों के एकाधिकार की आशंका रहती है। वहीं
स्वस्थ कारोबारी प्रतिस्पर्धा की जगह कॉर्पोरेट झगड़ा सामने आता है। इसका दंश उपभोक्ताओं को झेलना पड़ता
है। ऐसे में कर्तव्य काल में पारित हुआ दूरसंचार अधिनियम इस क्षेत्र में पारदर्शिता, उपभोक्ता हितों और निवेश
का नया दौर लेकर आएगा।
दूरसंचार क्षेत्र में शोध और निवेश को बढ़ावा
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय दूरसंचार क्षेत्र अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ा है। देश में ब्रॉडबेंड इंटरनेट उपयोगकर्ता
2014 के मुकाबले डेढ़ करोड़ से बढ़कर 85 करोड़ हो चुके हैं। भारत दुनिया में सबसे अधिक तेजी से 5जी
तकनीक अपनाने वाला देश है। दूरसंचार क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले उपकरण मेक इन इंडिया के अंतर्गत बन
रहे हैं। दूरसंचार क्षेत्र में उपयोग होने वाली वस्तुओं और उपकरणों के लिए लंबे समय तक भारत आयात पर
निर्भर रहा है। मेक इन इंडिया जैसे अभियान की बदौलत अब दूरसंचार सेवाओं से जुड़े उपकरणों में भारत
आत्मनिर्भर बन चुका है। वर्तमान में 230 दिन के बजाय दस दिन में मोबाइल टॉवर लगाने को अनुमति प्रदान
की जाती है। अब तक देश में ढाई लाख ग्राम पंचायतों तक ऑप्टिकल फाइबर पहुंचाया जा चुका है। 4जी और
5जी तकनीक का उपयोग कर रहा भारतीय संचार निगम लिमिटेड (बीएसएसएनएल) परिचालन लाभ की स्थिति
में आ चुका है।
दूरसंचार क्षेत्र को सार्वभौमिक बनाने के लिए निवेश और नवोन्मेष को बढ़ावा देना होगा। 2021 में केंद्र सरकार
ने दूरसंचार क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से सौ प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
आकर्षित करने के मामले में यह तीसरा बड़ा क्षेत्र बुन चुका है। देश की अर्थव्यवस्था में 6 प्रतिशत योगदान
दूरसंचार उद्योग का है। इस दिशा में दूरसंचार अधिनियम में भारत निधि कोष की स्थापना एक स्वागत योग्य
कदम है। यह यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (यूएसएसएफओ) के रूप में पहले भी अस्तित्व में रहा है।
यूएसएसएफओ द्वारा 1 अक्टूबर 2022 को दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीटीडीएफ) योजना शुरू की गई
थी। इसके जरिए घरेलू कंपनियों को ग्रामीण क्षेत्रों में दूरसंचार सेवाओं का विस्तार करने वाले उपकरण तैयार
करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। दूरसंचार क्षेत्र में नये स्टार्टअप को प्रेरित करने के लिए साइनबॉक्स की
व्यवस्था खड़ी की जाएगी। इससे एक निश्चित दायरे में शोध करने वालों को स्पेक्ट्रम उपयोग की अनुमति
होगी।