Gen-Z के लिए क्लेश नहीं फ्रेंड बनिए
सुबह-दोपहर और शाम पल-पल सोशल मीडिया पर स्टेटस अपडेट और स्नैपचैट। भाई को ब्रो, सिस्टर को सिस और टॉक्सिक वर्जन गालियों के साथ चिल करो का तकिया कलाम। फीलिंग्स जताने के लिए शब्दों की जगह इमोजी बेस्ड एक्सप्रेशन। फ्रेंड्स के साथ क्लबिंग, हुक्का और सुट्टा बार जाने को लेकर घर पर क्लेश। रिलेशनशिप की जगह सिचुएशनशिप पर यकीन रखने वाले Gen-Z (Generation-Z) की महज क्या इतनी पहचान है। यह वह जेनरेशन है जो 1996 से 2012 के बीच इस दुनिया में आई है। इनके पीछे मिलेनियल्स (1980-1996) और आगे अल्फा (2012-2025) हैं। वैसे तो हर जेनरेशन को उसकी पिछली पीढ़ी के लोग किसी न किसी बात पर कोसते हैं, लेकिन Gen-Z का मिलेनियल्स के साथ कुछ ज्यादा ही टकराव है। ये जेनरेशन मिलेनियल्स,एक्स, बेबी बूमर्स के मुकाबले टेक्नोलॉजी और कल्चर की सरहदों को फांदने में काफी आगे है। मिलेनियल्स और एक्स मां-बाप को भी लगता है आखिर वह भी तो ग्लोबल विलेज में पैदा हुए हैं। ऐसे में लाइफस्टाइल से लेकर मोरल वैल्यूज पर ज्ञान देने का कुछ हक तो बनात ही है।
- Gen-Z यगस्टर्स एवरेज 6 घंटे हर रोज मोबाइल फोन पर स्पेंड करते है। इसमें 70 परसेंट टाइम ओटीटी प्लेटफॉर्म पर गुजरता है। शायद ही कोई दिन बीते जब Gen-Z राजा ओटीटी की कुंडी न खड़काते हों।
- रील और टिकटॉक को लेकर इनका क्रेज किसी नेशनल डिजास्टर से कम नहीं। बॉलीवुड से लेकर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री Gen-Z को ध्यान में रखकर फिल्में और कंटेंट परोस रही है। इस जेनरेशन ने ऑनलाइन गेमिंग और बेट्स की तो एक इकोनॉमी ही खड़ी कर दी है।
- Gen-Z ने हनी सिंह, बादशाह, नेहा कक्कड़ से लेकर एल्विश यादव को सिर माथे पर बैठाया। स्मार्टफोन के साथ पैदा हुई अगली अल्फा जेनरेशन को टक्कर देने के लिए कैनेडियन रैपर ड्रेक और अमेरिकन सिंगर ट्रेलर स्विफ्ट के साथ ही ब्लैक पिंक म्यूजिक पर भी थिरकती है।
- मिलेनियल्स के लिए जो जो बॉयफ्रेंड सोना और बाबू बस थे, वह Gen-Z के लिए नोना,बुग्गु,जिंदजान बन गए। गर्लफ्रेड मोटो, क्यूटिपाई, मंचकीन नाम से दुलारी जाती हैं।
- नोना हो या क्यूटिपाई जरा भी टेंशन दी तो उसे टॉक्सिक कहकर गो टू हेल और रेड फ्लैग्ड कहने में देर नहीं करते।
- Gen-Z को लाइफ में शॉर्टकट बहुत पसंद है। इनकी बोलचाल लैंग्वेज पर जरा गौर फरमाएं। गुड मॉर्निंग को GM और स्वीट ड्रीम को SD वाली विरासत को Gen-Z को आगे बढ़ा रही है। कुछ शब्दों पर गौर फरमाएं। kkrh (क्या कर रही है), hru (how are you), ttul (talk to you letter), kkrh (क्या कर रही है), grwm (get ready with me)।
- Gen-Z की सबसे बड़ी समस्या उन्हें किसी भी बात के लिए रोकटोक कतई पसंद नहीं। नशा, ड्रग्स और बाली उम्र में ही फिजिकल रिलेशंस इस पीढ़ी के सामने सबसे बड़ा चैलेंज है।
जेन-जी की ताकत को पहचानें
- सोशल वैल्यूज को लेकर भले ही ये जेनरेशन उतनी संजीदा न हो, लेकिन यह किसी भी जेनरेशन के मुकाबले कहीं अधिक टेक्नोसेवी है। यूपीआई से लेकर कोविन एप की कामयाबी के पीछे जेन-जी का बड़ा रोल है। डिजी लॉकर से लेकर कोई भी डिजिटल इनिशिएटिव लॉन्च हुआ नहीं कि Gen-Z उसे अपनाने में देर नहीं करती।
- देश में कई सफल और बड़े स्टार्टअप्स के पीछे Gen-Z माइंड काम कर रहा है। 21 साल के आदित पालीचा और 20 साल कैवल्य वोहरा का ई-किराना स्टोर जेप्टो इस साल यह देश का पहला यूनिकॉर्न बन चुका है। टाइम्स ऑफ इंडिया की अनस्टॉपेबल-21 लिस्टम में शामिल 20 साल के अपल्ला साइकिरन Gen-Z से ही निकले रोलमॉडल हैं। साइकिरन एजेंल इनवेस्टर्स की नेटवर्किंग को बढ़ावा देने वाला स्कोप एप देश के शीर्ष उभरते स्टार्टअप में शामिल है।
- टेक कंपनियों का ज्यादातर इन्वेस्टमेंट इस पीढ़ी को अट्रैक्ट करने पर है। प्रॉडक्ट डिजाइनिंग लेकर उसके फीचर्स तैयार करने में टेककंपनियां मिलेनियल्स और एक्स-वाई जेनरेशन के बजाय Gen-Z और अल्फा पर फोकस कर रही हैं।
- Gen-Z एनवायरमेंट और ह्यूमन राइट्स को लेकर संजीदा हैं। यूरोप में तो फ्राइडे फॉर फ्यूचर जैसे मूवमेंट ही इस जेनरेशन ने खड़े कर दिए हैं। ये पीढ़ी अपने वोटिंग राइट् का इस्तेमाल अपनी मर्जी से करती है। सवाल है कि क्या हमारे राजनीतिक दल Gen-Z को कनेक्ट कर पा रहे हैं।
कैसे कम होगा जेनरेशन गैप
Gen-Z को ज्ञान देते समय मिलेनियल्स और एक्स जेनरेशन मां-बाप वही गलती करते हैं जिसके लिए वह बेबी बूमर्स से झगड़ते थे। उन्हें लंबा चौड़ा ज्ञान देने के बजाय एग्जांपल सेट करना बेहतर होगा। नौकरीपेशा मां-बाप खुद फास्ट फूड और जंक फूड पर जरुरत से ज्यादा डिपेंड होंगे तो Gen-Zसे बेहतर खानपान की उम्मीद बेईमानी है। न्यूक्लियर फैमिली को सबसे अधिक अपनाने वाले मिलेनियल्स को पहले खुद भी सोशल होना पड़ेगा। Gen-Z भारत जैसे उभरते हुए देश के वर्कफोर्स का अहम हिस्सा हैं। क्या हम इस जेनरेशनर को एक बेहतर वर्ककल्चर दे पा रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 33 परसेंट Gen-Z अपनी नौकरियों से खुश नहीं हैं। ऐसे में जॉबप्लेस को एक्साइटमेंट के उपाय करने होंगे। उन्हें घर से लेकर वर्कप्लेस पर ऐसी मेंटरिंग की जरुरत है जो उनकी उम्मीदों और सोच को पंख लगाने वाला हो।